BA Semester-1 Raksha Evam Strategic Study - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2635
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 रक्षा एवं सैन्य अध्ययन

प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
युद्ध के आर्थिक कारणों की विवेचना कीजिए।
अथवा
सशस्त्र संघर्ष प्रारम्भ होने के पूर्व आर्थिक युद्ध पर संक्षिप्त विवरण लिखिए।

उत्तर -

आर्थिक युद्ध कर्म
(Economic War Fare)

आधुनिक युग में पूर्ण युद्ध का अत्याधिक महत्व है। प्राचीन काल में युद्ध को संचालित करने के लिए आर्थिक समस्या का सामना कम करना पड़ता था, इसका कारण यह था कि उस समय छोटी-छोटी सेनायें साधारण शस्त्रों में लड़ा करती थी। वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। इसी कारण युद्ध में आर्थिक तत्व की महत्ता बढ़ गई है। अर्थशास्त्र के विज्ञान में आज का युद्ध पूर्ण रूप से प्रभावित करता है। सेना के लड़ने की क्षमता सहयोग पर निर्भर करती है। आज के युद्ध में विशाल सेनाओं को खड़ा करना पड़ता है, जिसके लिए भारी धनराशि की आवश्यकता होती है।

परिभाषा - सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री "लायनल रॉबिन्स" के शब्दों में " आधुनिक युद्धों के सम्बन्ध में जबकि स्थिति किसी की क्षण विषम हो जाती है, धन की आवश्यकता होती है। जो राष्ट्र सम्पूर्ण युद्ध की घोषणा करता है उसे प्रत्येक दशा में अपनी आर्थिक दशा को पूर्ण नियोजित ढंग से सुधार लेना चाहिए।"

इस प्रकार इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सैनिक युद्ध के साथ ही आर्थिक युद्ध भी चलता रहना आवश्यक है। धन की कमी से युद्ध को दूरगामियाँ प्रदान करने में सक्षम नहीं हुआ जा सकता। वर्तमान सेनाओं के लिए आधुनिक वैज्ञानिक अस्त्र-शस्त्रों आणविक हथियार, साज-सज्जा, यातायात के साधनों की आपूर्ति गतिशील युद्धों के लिए वायुयान, टैंक, राकेट आदि की आपूर्ति के लिए आर्थिक स्थिति का ठीक होना आवश्यक है। इतना ही नहीं बल्कि वित्त व्यवस्था के साधन पूरे तौर पर सुव्यवस्थित होना चाहिये, ताकि युद्ध आरम्भ होने पर असीमित काल तक उनकी आपूर्ति होती रहे। युद्ध काल की सफलता के लिए आर्थिक क्षमता बनाये रखना आवश्यक है। युद्ध काल में आर्थिक क्षमता इसलिए भी आवश्यक है कि औद्योगिक क्षमता का अधिक भाग सुरक्षा सम्बन्धित उत्पादन में लगाना तथा सार्वजनिक कार्यों को सम्पादित करने में कटौती करनी पड़ती है। इसके फलस्वरूप हमारे सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। उनका नियंत्रण करने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान काल में जब युद्ध छिड़ जाता है तो सैनिक और आर्थिक युद्ध साथ-साथ चलता है। यदि सेना रणभूमि में प्रत्यक्ष रूप में युद्ध करती है तो युद्ध का संचालन सार्वजनिक उत्पादन पर निर्भर है।

आर्थिक युद्ध का महत्व
(Importance of Economic Warfare)

(1) आर्थिक युद्ध का सैन्य युद्ध के समान ही महत्व है। युद्ध के मध्य शत्रु हमें आर्थिक दृष्टि से शिथिल बनाने का उपाय करता है और हमारी अर्थ-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर सकता है। इसके लिए वह वायुयान द्वारा बमबारी करके, खड़ी, फसलों पर रासायनिक द्रव का छिड़काव तथा समुद्र में व्यापारिक जहाजों को डुबो सकता है। प्रायः देखा गया है कि शत्रु देश व्यापारिक समुद्री जहाजों को रोककर विदेशी सहायता में रुकावट डालने का पूर्ण प्रयास करता है।

(2) फायरिंग के समय शत्रु के औद्योगिक केन्द्रों की दीवारों को बर्बाद करना आवश्यक होता है। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी, इंग्लैण्ड का ब्लाकिड करना चाहता था, ताकि वह अपनी हार मान कर आत्मसमर्पण कर सके।

(3) आज के समय में युद्ध मानव शक्ति पर आधारित न होकर शस्त्रों की शक्ति पर निर्भर है, अतः

किसी भी राष्ट्र की क्षमता उसके कार्य पर निर्भर होती है। अधिक श्रेष्ठ अस्त्र-शस्त्रों द्वारा सुसज्जित सेना न्यून श्रेष्ठ शस्त्रों वाली सेना को आसानी से हरा सकती है। इसलिए किसी भी राष्ट्र के लिए आर्थिक दृष्टि से मजबूत होना आवश्यक है।

(4) आजकल सेना विशाल होती है अतः उसके प्रशासन की समस्या धन द्वारा ही हल की जा सकती है। इस प्रकार आधुनिक युद्ध में विभिन्न प्रकार की विशाल सेवाओं की कार्य कुशलता को बनाए रखना एक परिवार की उचित देखभाल के समान है।

युद्ध को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारण

इनमें से कुछ तत्व आर्थिक शक्ति को प्रदर्शित करते हैं। यद्यपि इनमें से कुछ का प्रत्यक्ष सम्बन्ध आर्थिक रूप के अध्ययन से नहीं है जो युद्ध के लिए किया जाना चाहिए ये तत्व निम्नलिखित हैं-

 

(1) भौगोलिक स्थिति - सर्वप्रथम भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करना एक सैनिक का महत्वपूर्ण विषय है। आर्थिक क्षमता के अध्ययन में भौगोलिक अध्ययन इस बात को नहीं बताता कि वह देश की आर्थिक व्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है। जलवायु सैनिक के स्वास्थ्य और शक्ति पर प्रभाव डालती है और इसका महत्व खाद्यान्नों के उत्पादन की मात्रा बढ़ाने में भी है। एक राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति उसके वितरण के साधनों को विकसित करती है और दूसरे देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंधों को विकसित करती है और दूसरे देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंधों को बढ़ाती है। भारत की स्थिति और आकार बड़े रूप में उसके व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करता है। वास्तव में संसार के मानचित्र पर भारत की भौगोलिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि वह उसे युद्ध कौशलात्मक स्थिति का रूप प्रदान करती है। भारत का विस्तृत व्यापारिक सम्बन्ध जो पूर्व और पश्चिम के देशों से जुड़ा हुआ है, उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण ही है। एक राष्ट्र के आकार का प्रभाव भौतिक और राजनैतिक एकता पर पड़ता है। इसके साथ ही एक राष्ट्र के पर्वतों, मरूस्थलों, बन्दरगाहों, नदियों का देश के आर्थिक ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

(2) मानव शक्ति - मानव शक्ति का तत्व भी शक्ति का आधार है। इसके लिए केवल व्यक्तियों की संख्या का होना काफी नहीं अपितु उनमें कार्य करने की क्षमता का होना आवश्यक है। मनुष्य की जन्म दर में वृद्धि होना राष्ट्र को सबल नहीं बनाता है। भारत के लिए गृह उपज की अपेक्षा भूमि उपज की अधिक आवश्यकता है। सैनिक की शारीरिक व मानसिक कार्यकुशलता, का युद्ध संचालन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य, शिक्षा, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रशिक्षण तथा जीवन स्तर पर इन सभी से एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की निर्बलता अथवा शक्ति का आभास होता है। औद्योगिक क्षमता का न केवल राष्ट्र की आर्थिक क्षमता के लिए ही महत्व है, बल्कि उससे उसकी आपेक्षिक और सही माप का पता चलता है। इसलिए मानव शक्ति भी राष्ट्र की यौद्धिक अर्थक्षमता में महत्वपूर्ण तत्व है।

(3) प्राकृतिक संसाधन - प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा एक राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि होती है। शक्ति के साधनों के अभाव में उस राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था निर्बल हो जाती है। कोयला, पेट्रोलियम, जल शक्ति जैसे प्राकृतिक साधनों का होना उस राष्ट्र की औद्योगिक विशालता के लिए परम आवश्यक है। प्राकृतिक साधनों के समुचित प्रयोग से ही संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जापान तथा यूरोप के अन्य राष्ट्र औद्योगिक क्षमता बढ़ाने में समर्थ हो सके हैं। भारत को भी अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ाने के लिए इन साधनों का सही उपयोग करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त आज एक राष्ट्र की आर्थिक शक्ति बहुत कुछ पृथ्वी के भूगर्भ से प्राप्त होने वाली खनिज सम्पदा पर निर्भर करती है। कोई भी महान देश कोयले और लोहे के बिना जीवित नहीं रह सकता, क्योंकि ये खनिज भारी उद्योगों की आधारशिला है। इन आधारभूत खनिजों के अभाव में आधुनिक युद्धों को लड़ा जाना संभव नहीं है।

(4) औद्योगिक क्षमता औद्योगिक क्षमता का केवल राष्ट्र की आर्थिक क्षमता के लिए ही महत्व नहीं है, बल्कि उससे उसकी सही और आपेक्षिक माप का पता चलता है। कृषि उद्योग किसी भी राष्ट्र की औद्योगिक क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कृषि उद्योग को निर्धारित करने वाले प्रमुख तत्व से तात्पर्य एक राष्ट्र के भरण-पोषण की क्षमता से है। कृषि उपजों की कमी के कारण युद्ध के समय राष्ट्र को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त सैनिक महत्व के पदार्थों लकड़ी, वनस्पति, जीवों से प्राप्त तेल, रबड़, रेशे वाले पदार्थों का उत्पादन भी आर्थिक क्षमता के लिए अनिवार्य है। खानों और उत्पादक उद्योगों के द्वारा सशस्त्र सेनाओं की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। लोहा इस्पात का उत्पादन राष्ट्रों की औद्योगिक क्षमता को बढ़ाता है। लोहा इस्पात की उपयुक्त मात्रा के बिना सन्तुलित अर्थव्यवस्था का निर्धारण असम्भव होता है। सभी उत्पादन साधनों के लिए इस्पात एक आवश्यक पदार्थ है। सेवा उद्योगों के अन्तर्गत यातायात सेवा, संदेशवाहन, आर्थिक महत्व, के संस्थान तथा दूसरे महान कार्य हैं, जो एक राष्ट्र को सम्भावित आधुनिक औद्योगिक शक्ति प्रदान करते हैं।

(5) बाह्य आर्थिक सम्बन्ध सैनिक कारणों वश आत्म-निर्भर होने की इच्छा के बावजूद भी कोई राष्ट्र पूर्ण रूप से उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकता। फलस्वरूप उसके विदेशी आर्थिक सम्बन्ध उसके ध्येय को पूरा करने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करते हैं। प्राकृतिक साधनों के अव्यवस्थित रूप से वितरण होने के कारण सभी राष्ट्र न्यूनाधिक रूप से आयात पर निर्भर रहते हैं। ज्यों-ज्यों एक राष्ट्र का औद्योगीकरण बढ़ता है, वह राष्ट्र आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चलता है, केवल इसलिए नहीं कि उसे अपने उद्योगों के प्रचलन के लिए कच्चे पदार्थों का आयात करना पड़ता है, अपितु आयात पर इसलिए भी निर्भर करता है जिससे कि वह अपनी जनसंख्या का भरण-पोषण कर सके। जैसे-जैसे जीवन का स्तर ऊँचा उठता जाता है, मनुष्य की रुचियाँ बढ़ती है, परिणामस्वरूप पदार्थों का आयात भी बढ़ता है। प्रारम्भिक रूप में पनपे हुए देश व आराम आवश्यकताओं का रूप धारण करने लगते हैं। " एक राष्ट्र की आर्थिक सशक्ता, सैनिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति के लिए नीतियों के निर्धारण तथा विदेशी व्यापार में वृद्धि करने वाली नीतियों के बीच हुए संघर्ष से प्रभावित होती है। "

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- स्त्रातेजी अथवा कूटयोजना (Strategy) का क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- स्त्रातेजी का उद्देश्य क्या है? स्त्रातेजी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये क्या उपाय किये जाते हैं?
  3. प्रश्न- स्त्रातेजी के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  4. प्रश्न- महान स्त्रातेजी पर एक लेख लिखिये तथा स्त्रातेजी एवं महान स्त्रातेजी में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  5. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक भूगोल से आप क्या समझते हैं? सैन्य दृष्टि से इसका अध्ययन क्यों आवश्यक है?
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  7. प्रश्न- स्त्रातेजी का अर्थ तथा परिभाषा लिखिये।
  8. प्रश्न- स्त्रातेजिक गतिविधियाँ तथा चालें किसे कहते हैं तथा उनमें क्या अन्तर है?
  9. प्रश्न- महान स्त्रातेजी (Great Strategy) क्या है?
  10. प्रश्न- पैरालिसिस स्त्रातेजी पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- युद्धों के विकास पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  13. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते है? युद्ध की विशेषताएँ बताते हुए इसकी सर्वव्यापकता पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- युद्ध की चक्रक प्रक्रिया (Cycle of war) का उल्लेख कीजिए।
  15. प्रश्न- युद्ध और शान्ति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- युद्ध से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- वैदिककालीन सैन्य पद्धति एवं युद्धकला का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- राजदूतों के कर्तव्यों का विशेष उल्लेख करते हुए प्राचीन भारत की युद्ध कूटनीति पर एक निबन्ध लिखिये।
  19. प्रश्न- समय और कालानुकूल कुरुक्षेत्र के युद्ध की अपेक्षा रामायण का युद्ध तुलनात्मक रूप से सीमित व स्थानीय था। कुरुक्षेत्र के युद्ध को तुलनात्मक रूप में सम्पूर्ण और 'असीमित' रूप देने में राजनैतिक तथा सैन्य धारणाओं ने क्या सहयोग दिया? समीक्षा कीजिए।
  20. प्रश्न- वैदिक कालीन "दस राजाओं के युद्ध" का वर्णन कीजिये।
  21. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्धों के वास्तविक कारण क्या होते थे?
  22. प्रश्न- महाकाव्यों के काल में युद्ध के कौन-कौन से नियम होते थे?
  23. प्रश्न- महाकाव्यकालीन युद्ध के प्रकार एवं नियमों की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- वैदिक काल के रण वाद्य यन्त्रों के बारे में लिखिये।
  25. प्रश्न- पौराणिक काल में युद्धों के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- प्राचीन भारतीय सेना के युद्ध के नियमों को बताइये।
  27. प्रश्न- युद्ध के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- युद्धों के सिद्धान्तों में प्रशासन (Administration) का क्या महत्व है?
  29. प्रश्न- नीति के साधन के रूप में युद्ध के प्रयोग पर सविस्तार एक लेख लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध की उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण में युद्ध की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- अतीत को युद्धों की तुलना में वर्तमान समय में युद्धों की संख्या में कमी का क्या कारण है? प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- आधुनिक युद्ध की प्रकृति और विशेषताओं की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- आधुनिक युद्ध को परिभाषित कीजिए।
  35. प्रश्न- गुरिल्ला स्त्रातेजी पर माओत्से तुंग के सिद्धान्तों का उल्लेख करते हुए गुरिल्ला युद्ध के चरणों पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- चे ग्वेरा के गुरिल्ला युद्ध सम्बन्धी विभिन्न विचारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  37. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए तथा गुरिल्ला विरोधी अभियान पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- प्रति विप्लवकारी (Counter Insurgency) युद्ध के तत्वों तथा अवस्थाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- चीन की कृषक क्रान्ति में छापामार युद्धकला की भूमिका पर अपने विचार लिखिए।
  40. प्रश्न- चे ग्वेरा ने किन तत्वों को छापामार सैन्य संक्रिया हेतु परिहार्य माना है?
  41. प्रश्न- छापामार युद्ध कर्म (Gurilla Warfare) में चे ग्वेरा के योगदान की विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध में प्रचार की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध कर्म की स्त्रातेजी और सामरिकी पर प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- छापामार युद्ध को परिभाषित करते हुए इसके सम्बन्ध में चे ग्वेरा की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- लेनिन की गुरिल्ला युद्ध-नीति की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- गुरिल्ला युद्ध क्या है?
  47. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- आधुनिक युद्ध क्या है? 'आधुनिक युद्ध अन्ततः मनोवैज्ञानिक है' विस्तृत रूप से विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- सैन्य मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध के कौन-कौन से हथियार हैं? व्याख्या कीजिए।
  51. प्रश्न- प्रचार को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- अफवाह (Rumor) क्या है? युद्ध में इसके महत्व का उल्लेख करते हुए अफवाहों को नियंत्रित करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- आतंक (Panic) से आप क्या समझते हैं? आंतंक पर नियंत्रण पाने की विधि का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- भय (Fear) क्या है? युद्ध के दौरान भय पर नियंत्रण रखने वाले विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- बुद्धि परिवर्तन (Brain Washing) क्या हैं? बुद्धि परिवर्तन की तकनीकों तथा इससे बचने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
  56. प्रश्न- युद्धों के प्रकारों का उल्लेख करते हुए विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  57. प्रश्न- युद्ध की परिभाषा दीजिए। युद्ध के सामाजिक, राजनैतिक, सैन्य एवं मनोवैज्ञानिक कारणों की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- कूटनीतिक प्रचार (Strategic Propaganda ) एवं समस्तान्त्रिक प्रचार (Tactical Propaganda ) में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- प्रचार एवं अफवाह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक युद्ध की उपयोगिता बताइये।
  61. प्रश्न- युद्ध एक आर्थिक समस्या के रूप में विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- आर्थिक युद्ध की परिभाषा दीजिए। आर्थिक युद्ध कर्म पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- आधुनिक युद्ध राजनीतिक सैनिक कारणों की अपेक्षा सामाजिक आर्थिक कारकों के कारण अधिक होते हैं। व्याख्या कीजिए।
  64. प्रश्न- आर्थिक क्षमता से आप क्या समझते हैं?
  65. प्रश्न- आधुनिक युद्ध में आर्थिक व्यवस्था का महत्व बताइये।
  66. प्रश्न- युद्ध को प्रभावित करने वाले तत्वों में से प्राकृतिक संसाधन पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- युद्ध कौशलात्मक आर्थिक क्षमताएँ व दुर्बलताएँ बताइये।
  68. प्रश्न- युद्धोपरान्त उत्पन्न विभिन्न आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिये
  69. प्रश्न- युद्ध की आर्थिक समस्यायें लिखिए?
  70. प्रश्न- युद्ध के आर्थिक साधन क्या हैं?
  71. प्रश्न- परमाणु भयादोहन के हेनरी किसिंजर के विचारों की व्याख्या कीजिये।
  72. प्रश्न- आणविक भयादोहन पर एक निबन्ध लिखिये।
  73. प्रश्न- परमाणु भयादोहन और रक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित सैन्य विचारकों के विचार लिखिए। (i) आन्द्रे ब्यूफ्रे (Andre Beaufre), (ii) वाई. हरकाबी (Y. Harkabi), (iii) लिडिल हार्ट (Liddle Hart), (iv) हेनरी किसिंजर (Henery Kissinger) |
  74. प्रश्न- परमाणु युग में सशस्त्र सेनाओं की भूमिका की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- मैक्यावली से परमाणु युग तक के विचारों एवं प्रचलनों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- आणविक युग में युद्ध की आधुनिक स्रातेजी को कैसे प्रयोग किया जायेगा?
  77. प्रश्न- 123 समझौते पर विस्तार से लिखिए।
  78. प्रश्न- परमाणविक युद्ध की प्रकृति एवं विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- आणविक शीत से आप क्या समझते हैं?
  80. प्रश्न- नाभिकीय तनाव को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- परमाणु बम का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ हुआ?
  82. प्रश्न- हेनरी किसिंजर के नाभिकीय सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T) से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- हरकावी के नाभिकीय भय निवारण- सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- आणविक युग पर प्रकाश डालिए।
  86. प्रश्न- हर्काबी के नाभिकीय युद्ध संक्रिया सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
  87. प्रश्न- रासायनिक तथा जैविक अस्त्र क्या हैं? इनके प्रयोग से होने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- रासायनिक युद्ध किसे कहते हैं? विस्तार से उदाहरण सहित समझाइए।
  89. प्रश्न- विभिन्न प्रकार के रासायनिक हथियारों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- जैविक युद्ध पर एक निबन्ध लिखिए।
  91. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध कर्म से बचाव हेतु तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
  92. प्रश्न- रासायनिक एवं जीवाणु युद्ध को समझाइये |
  93. प्रश्न- जनसंहारक अस्त्र (WMD) क्या है?
  94. प्रश्न- रासायनिक एवं जैविक युद्ध के प्रमुख आयामों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  95. प्रश्न- विश्व में स्थापित विभिन्न उद्योगों में रासायनिक गैसों के उपयोग एवं दुष्प्रभाव परप्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- प्रमुख रासायनिक हथियारों के नाम एवं प्रभाव लिखिए।

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